
सनातन परंपरा में श्रीमद्भगवद्गीता का बहुत ज्यादा महत्व है. यह भगवान श्री विष्णु के आठवें अवतार माने जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश पर आधारित पवित्र धार्मिक ग्रंथ है, जिसे उन्होंने महाभारत के युद्ध के समय कहा था.
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को दिया था,
इसीलिए इस दिन पूरे देश में गीता जयंती का महापर्व मनाया जाता है. इस साल गीता जयंती का पर्व 03 दिसंबर 2022 को पड़ने जा रहा है. आइए गीता जयंती की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं.
गीता जयंती का शुभ मुहुर्त :-
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन मनाया जाने वाली गीता जयंती का पर्व इस साल 3 दिसंबर 2022 को मनाया जाएगा और इस साल श्रीमद्भगवद्गीता की इस साल 5159वीं वर्षगांठ होगी.
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी 03 दिसम्बर 2022 को प्रात:काल 05:39 से प्रारंभ होकर 04 दिसंबर 2022 को प्रात:काल 05:34 बजे तक रहेगी.
गीता जयंती का धार्मिक महत्व :-
हिंदू धर्म में अत्यंत ही पवित्र मानी जानी वाले श्रीमद्भगवद्गीता के बारे में मान्यता है कि जो कोई व्यक्ति गीता जयंती के दिन इसकी विधि-विधान से पूजा और इसमें दिए गए भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों का पाठ करता है,
उसे अपने जीवन में उतारता है, उस पर भगवान श्री कृष्ण की पूरी कृपा बरसती है और उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने वाला कभी भी मोह-माया के बंधन में नहीं फंसता है. मान्यता है प्रतिदिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने वाला साधक सभी सुखों को भोगता हुआ अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है.
भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों दिया था गीता के उपदेश ?
महाभारत काल में जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में कौरव और पांडवों के बीच धर्मयुद्ध हो रहा था तो अर्जुन अपने ही भाईयों और बड़े बुजुर्गों के साथ युद्ध करने को लेकर भावुक हो गए थे. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सही और गलत का फर्क बताते हुए उनके माया-मोह को दूर करने और धर्मपथ पर चलते हुए अपने कर्म करने का संदेश दिया था.
भगवान श्रीकृष्ण की दिखाई इस राह के बाद पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की थी.भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दिए गए गीता के उपदेश आज इस काल में भी प्रासंगिक हैं, जिन्हें न सिर्फ हिंदू बल्कि दूसरे धर्म से जुड़े लोग भी अपने जीवन में अपनाते हैं.
गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन (जन्म-मरण) से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है। गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है। भगवद्गीता में कई विद्याओं का वर्णन है, जिनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या।
माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है। साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है। ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहंकार और गर्व के विकार से बचता है। ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है।
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