
आज चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। यह मराठी नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी का अर्थ है ध्वज यानी झंडा और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आज यानी 22 मार्च को है।
इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि के बाद विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं। यह पर्व विशेष तौर पर कर्नाटक,गोवा,महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी खास बातें और कैसे और क्यों मनाया जाता है ये पर्व।
कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा :-
गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और आम या अशोक के पत्तों से अपने घर में तोरण बांधते हैं।
घर के आगे एक झंडा लगाया जाता है जिसे गुड़ी कहते हैं।
एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है।
इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड,रामरक्षास्रोत और देवी भगवती की पूजा-मंत्रों का जप किया जाता है।
स्वास्थ्य कामना हेतु नीम की कोपल गुड़ के साथ खाई जाती हैं।
गुड़ी पड़वा से जुड़ी मान्यताएं :-
पौराणिक कथा के अनुसार रामायण काल में दक्षिण भारत में सुग्रीव के बड़े भाई बाली का अत्याचारी शासन था। जब सीटखोज के दौरान श्री राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई तो उन्होंने बाली के अत्याचारों की जानकारी मिली तब भगवान राम ने बाली का वध करके वहां की प्रजा को अत्याचार से मुक्ति दिलाई। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह दिन चैत्र प्रतिपदा का था।
अन्य कथा के अनुसार शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की एक सेना बनाई और उस पर मंत्रोंच्चारित जल छिड़ककर उनमें प्राण डाल दिए। इसके बाद सेना की मदद से दुश्मनों को परास्त किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ भी माना जाता है।
प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री ने अपने अनुसन्धान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए भारतीय ‘पंचांग ‘ की रचना की थी।
एक अन्य मान्यता के अनुसार चैत्र प्रतिपदा के दिन ही उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था।
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