लोहड़ी का त्योहार मुख्य रूप से पंजाब का त्योहार है। लेकिन उत्तर भारत में भी इस पर्व को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। यह पर्व फसल के लिए ईश्वर का आभार जताने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन पंजाब में लोग अलाव जलाते हैं और पारंपरिक वेशभूषा में पुरुष भंगड़ा और महिलाएं गिद्दा करती हैं।
लोहड़ी की आग में प्रार्थना करते समय ईश्वर को धन्यवाद देते हुए सभी लोग तिल, मूंगफली, रेवड़ी आदि डालकर प्रार्थना करते हैं। इस दिन तिल, गुड़ खाने की भी परंपरा है। बच्चे घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं। उन्हें गुड़, तिल, गजक, रेवड़ी दी जाती है। लड़के लोहड़ी गीत गाते हैं। लोहड़ी के पर्व का विशेष महत्व है और इससे कई लोककथाएं भी जुड़ी हैं। आइए जानते हैं उन कथाओं के बारे में।
दुल्ला भट्टी की कहानी :-
पहली लोककथा दुल्ला भट्टी की है। इस कथा के अनुसार मुगल राजा अकबर के काल में दुल्ला भट्टी नामक एक लुटेरा था। वह पंजाब में रहता था। दुल्ला लुटेरा जरूर था लेकिन गरीबों के लिए वह एक मसीहा था। दुल्ला भट्टी बाजार में बेची जाने वाली ग़रीब लड़कियों को बचाने के साथ ही उनकी शादी भी करवाता था। कहते हैं इसी वजह से लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। लोहड़ी के कई गीतों में भी इनके नाम का ज़िक्र होता है।
लोहिता वध की कथा :-
एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति से पूर्व श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस से लोहित नामक राक्षसी को गूकउल भेज था, लेकिन कान्हा ने खेल खेल में उसका वध कर दिया। लोकमान्यता के अनुसार उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।
सती का आत्मदाह :-
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने भगवान शंकर को छोड़कर अन्य सभी को आमंत्रित किया। अपने पति के इस अपमान से क्षुब्ध होकर देवी सती ने उसकी हवन कुंड की अग्नि में आत्मदाह कर लिया। कहते हैं इसी की याद में यह अग्नि जलाई जाती है।
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