
इस बार यह व्रत 23 अप्रैल, यानी कि रविवार के रखा जाएगा। हिन्दू धर्म के साथ जैन धर्मावलम्बियों के लिए भी वैशाख रोहिणी व्रत का बहुत महत्व है। खास तौर पर रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लोगों में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
वैसाख महीने में यह को पड़ रहा है। यूं तो यह व्रत प्रत्येक महीने में आता है लेकिन वैशाख और कार्तिक माह में आने वाले रोहिणी व्रत का महत्व बेहद ही अलग है।
यह व्रत मुख्य रूप से महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से महिला के जीवन साथी को लंबी आयु के साथ अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है। वैसे यह व्रत पुरुष भी रखते हैं। इसी के साथ यह भी मान्यता है कि यह व्रत कर्म विकार को दूर कर कर्म बंधन से छुटकारा दिलाता है।
आइए जानते हैं वैशाख रोहिणी व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।
रोहिणी व्रत का महत्व :-
रोहिणी व्रत का हिन्दू धर्म के साथ साथ जैन धर्म में भी विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार रोहिणी व्रत महिलाएं पति की लंबी उम्र और परिवार की सुख शांति के लिए रखती हैं। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति रोहिणी व्रत करते हैं उन्हें सभी प्रकार के दुख से मुक्ति मिलती है। जैन समुदाय में रोहिणी व्रत माता रोहिणी और भगवान वासुपूज्य का आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है। यह व्रत जैन समुदाय उत्सव के रूप में मनाता है, कई पुरुष भी इस व्रत को रखते हैं।
रोहिणी व्रत की पूजा विधि :-
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार रोहिणी व्रत में नीचे दिए तरीके से पूजा करें।
ब्रह्ममुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें।
भगवान वासुपूज्य की पंच रत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करें।
प्रतिमा की पूजा कर पूरे दिन भगवान वासुपूज्य की आराधना करें।
पूजा के बाद वस्त्र, पुष्प अर्पित करें, फल मिठाई का भोग लगाएं।
मन में ईर्ष्या द्वेष जैसे कुविचारों को आने न दें।
उद्यापन का नियम :-
रोहिणी व्रत की नियमित तीन, पांच या सात साल तक करने के बाद उद्यापन किया जाता है।
जिन लोगों के लिए तीन या पांच साल यह व्रत रखना संभव न हो, वह 5 महीने के बाद भी उद्यापन कर सकते हैं।
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