सम-सामयिक... इस ‘कोरोना काल’ में सब गड्ड-मड्ड है. हम घरों में सिमटे हैं. सब कुछ बंद-बंद सा...कुछ भी खुला नहीं...दिमागी ताले भी नहीं...सोचा था कुछ नया हो जायेगा इस बीच. कुछ लिखना-पढ़ना. लिखना हुआ नहीं, पढ़ना अजीब व्यतिक्रम का शिकार हो जा रहा है बार-बार.