
गुजरात हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी महिला को अपने पति के साथ रहने और संबंध बनाने के लिए कोर्ट के आदेश द्वारा भी मजबूर नहीं किया जा सकता। एक स्थानीय परिवार न्यायालय के फैसले को पलटते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है।
मुस्लिम परिवार से संबंधित एक मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून बहुविवाह की इजाजत देता है लेकिन इसे प्रोत्साहित नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि इस कानून के आधार पर किसी महिला को पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और पहली पत्नी अपने पति के साथ रहने से इनकार कर सकती है।
कोर्ट ने टिप्पणी की, "भारत में जो मुस्लिम कानून लागू किया जाता है, उसमें बहुविवाह की संस्था को सहन तो किया जाता है लेकिन प्रोत्साहित नहीं किया जाता. इसके तहत किसी पति को अपनी पत्नी को किसी अन्य महिला के साथ मिल जुलकर रहने के लिए मजबूर करने का मूलभूत अधिकार नहीं मिल जाता"
साथ रहना अन्यायपूर्ण ना हो गुजरात हाई कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक हालिया आदेश का भी संदर्भ दिया जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान में बस एक उम्मीद बनकर नहीं रहना चाहिए।
समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लागू करने का विचार है, जिसे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी जरूरी बताती है. गुजरात हाई कोर्ट में जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस नीरल मेहता की खंडपीठ ने कहा कि शारीरिक संबंधों की पुनर्स्थापना का अधिकार सिर्फ पति के अधिकारों पर निर्भर नहीं करता है और परिवार न्यायालय को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि महिला को पति के साथ रहने के लिए मजबूर करना अन्यायपूर्ण तो नहीं होगा।
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