
अंतरधार्मिक विवाह के कारण होने वाले धर्मांतरण का नियमन करने वाले राज्यों के विवादास्पद कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय दो जनवरी को सुनवाई करेगा।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ अधिवक्ता विशाल ठाकरे और एनजीओ ‘सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
उच्चतम न्यायालय जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर भी सुनवाई करेगा, जिसे उसने पिछले साल याचिकाओं में पक्ष बनने की अनुमति दी थी। संगठन ने दावा किया था कि देशभर में इन कानूनों के तहत बड़ी संख्या में मुस्लिमों को परेशान किया जा रहा है।
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक केंद्र या किसी राज्य ने कोई जवाब नहीं दिया है, जिन्हें वाद में पक्ष बनाया गया है।
शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी, 2021 को एनजीओ को अनुमति दी थी कि हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश को उसकी लंबित याचिका में पक्षकार बनाया जाए। इस याचिका के माध्यम से अंतरधार्मिक विवाहों के कारण धर्मांतरण पर नियंत्रण वाले राज्यों के विवादास्पद कानूनों को चुनौती दी गयी है।
शीर्ष अदालत ने छह जनवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के ऐसे कुछ नये कानूनों का परीक्षण करने पर सहमति जताई थी।
हालांकि, उसने कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से मना कर दिया और याचिकाओं पर हिमाचल प्रदेश तथा मध्य प्रदेश की सरकारों को नोटिस जारी किये।
एनजीओ ने पिछली सुनवाई में कहा था कि हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों को उसकी याचिका में पक्षकार बनाया जाए, क्योंकि उन्होंने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तर्ज पर कानून बनाये हैं।
उत्तर प्रदेश का विवादास्पद अध्यादेश न केवल अंतरधार्मिक विवाहों से संबंधित है, बल्कि सभी धर्मांतरणों से भी जुड़ा है और किसी अन्य धर्म को अपनाना चाह रहे व्यक्ति के लिए विस्तार से प्रक्रिया रेखांकित करता है।
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